विट्ठल पांडुरंग: महाराष्ट्र के लोकप्रिय देवताओं में से एक
विट्ठल पांडुरंग महाराष्ट्र के लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। उनके दर्शन करने के लिए हर साल लाखों तीर्थयात्री पंढरपुर की यात्रा करते हैं। यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सिर पर विट्ठल का पवित्र तुलसी का पौधा रखती हैं और पुरुष संतों के गीत गाते हैं।
13वीं सदी के ज्ञानेश्वर से लेकर आज तक के ज़्यादातर श्रद्धालु विट्ठल को कृष्ण का रूप मानते आए हैं। लेकिन पारंपरिक वैदिक या पौराणिक ग्रंथ इससे सहमत नहीं हैं। लेखक रामचंद्र चिंतामन ढेरे ने विट्ठल परंपराओं पर अध्ययन किया है। उनके अनुसार एक हज़ार साल पहले विट्ठल शायद एक ग्रामीण देवता थे, जिनकी पूजा स्थानीय चरवाहे करते थे। इसलिए शायद विट्ठल को कृष्ण के साथ जोड़ा गया। ंभवतः विट्ठल को कृष्ण के साथ जोड़ने के लिए देवगिरी (आधुनिक काल का दौलताबाद) के यादव राजाओं ने प्रोत्साहित किया। उन्होंने कृष्ण के वंशज होने का दावा किया और वे मराठी भाषा के सहायक थे। उनके 8वीं से 13वीं सदी तक के शासन के दौरान उन्होंने ‘वीर’ पत्थर स्थापित किए, जहां स्थानीय वीरों को देवता मानकर पूजा जाता था। कृष्ण या किसी और देवता के साथ जोड़े जाने से पहले विट्ठल की छवि शायद किसी वीर की छवि रही होगी।
कृष्ण या विष्णु की छवियों में आम तौर पर एक पैर दूसरे पैर पर रखा होता है या हाथ में बांसुरी होती है। लेकिन विट्ठल की छवि में यह नहीं दिखाई देता। इसके बावजूद भक्तों के लिए वे कृष्ण हैं। पंढरपुर के आस-पास कृष्ण के बचपन के गीत प्रसिद्ध हैं, जिनमें वे उनकी मां यशोदा के साथ समय बिताते हैं या यमुना नदी के किनारे गायों पर निगरानी रखते हैं। यह इसके बावजूद कि पास में उनकी पत्नी रुक्मिणी का एक मंदिर है, जिन्हें यहां के लोग रुखुमाई कहते हैं। गोकुल और अपने चरवाहे का जीवन पीछे छोड़ने के कई सालों बाद रुक्मिणी कृष्ण के जीवन में आई थीं। इससे स्पष्ट है कि कैसे हिंदू धर्म में शास्त्र भगवान की स्थापना नहीं करते, बल्कि उनकी स्थापना भक्तों की श्रद्धा और उनकी मान्यताओं से होती है। इससे भी रोचक बात यह है कि महाराष्ट्र के ज़्यादातर कवि-संत, जैसे ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, जनाबाई और तुकाराम, विट्ठल को विठोबा अर्थात पिता ही नहीं, बल्कि विठाई यानी माता भी मानते थे। ज्ञानेश्वर के भगवद् गीता पर लिखे भाष्य ‘ज्ञानेश्वरी’ में जब कृष्ण अर्जुन के सामने अपने सर्वव्यापी रूप में प्रकट होते हैं, तब अर्जुन कृष्ण को अपना मित्र नहीं मानते या उनके भक्त के रूप में पेश नहीं आते। वे कृष्ण को सर्वव्यापी माता के रूप में देखते हैं, जो स्नेही और कोमल हैं। इस प्रकार भक्त, भगवान की स्पष्ट रूप से पुरुष छवि होने के बावजूद अपनी कल्पना में स्त्री रूप में देखना पसंद करता है।
हिंदू धर्म में देवियों की कोई कमी नहीं है। महाराष्ट्र में दुर्गा, काली और गौरी की स्थानीय अभिव्यक्तियों को समर्पित कई मंदिर हैं। लेकिन विठाई इनसे अलग हैं। वे स्नेहमयी हैं, पोषण करने और क्षमा करने के लिए सदा तैयार। वे उस मादा कछुए के समान हैं जो अपने छोटे बच्चों को पालती है या उस गाय के समान जो अपने भयभीत बछड़े को दूध देने के लिए पहाड़ चढ़ती है।
- देवदत्त पटनायक | दैनिक भास्कर
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